Friday, November 19, 2010

माता कुमाता नहीं हो सकती .

                    एक माता-पिता ८-१० पुत्रों का पालन-पोषण करके भी चेहरे पर शिकन नहीं लाते मगर ८-१० पुत्र मिलकर भी माँ-बाप की सेवा नहीं कर पाते.संतान के लिए माँ-बाप भार क्यों बन जाते हैं? क्या माँगते हैं ये. बस प्यार के दो बोल.जरा से प्यार से बोल दो,पिघल जायेंगे.उनके दिल को जीतने का प्रयास करें तो दुनिया की सारी खुशियाँ आपकी झोली में होंगी.माँ-बाप समस्त तीर्थों से बढकर हैं.पूत कपूत हो सकता है मगर माता कुमाता नहीं हो सकती .
                                                                                   विश्वनाथ भाटी ,तारानगर.

Monday, November 15, 2010

               Why students fail in the the Exam?
_8 hours of sleep eachday =122 Days ;365-122=243 Days
_ Summer Holidays =61 Days  ;243-61 = 182 Days
_ Sundays in a Year = 52 days ;182-52 = 130 Days
_ Festival Holidays = 40 Days  ;130-40 = 90 Days
_ 3 Hours of daily playing = 46 Days  ;90-46 = 44 Days
_ Winter Holidays = 15 Days  ;44-15 = 29 Days
_ 1 hour per day for mobile & entertainment =15 Days  ;29-15 = 14 Days
_ Sickness  = 10 Days  ;14-10 = 4 days
_ Film,T.V. etc. in a year = 3 Days
_ Remaining 1 day is his/her Birthday,No study mood.Birthday enjoy......

बेवफा

      
लघुकथा



                                                     बेवफा 
     एक बार एक चिड़े ने चिड़ी से कहा,"मैं तुमसे कभी दूर नहीं होना चाहता हूँ. तुम मुझे छोड़कर कहीं उड़ मत जाना."
चिड़ी बोली,"यदि उड़ जाऊं तो तुम मुझे पकड़ लेना."
"पकड़ तो तुम्हे लूँगा मगर  इस तरह   मैं तुम्हें पा नहीं सकता."चिड़े ने रुआंसा होते हुए कहा.
तभी चिड़िया ने अपने सभी पंख नोच डाले और बोली,"लो अब मैं तुम्हारी हो चुकी.अब मैं कभी तुम्हें छोड़कर नहीं जा सकती." 
एक दिन जोरदार तूफ़ान उमड़ा.चिड़िया ने कहा,"मैं तो उड़ नहीं सकती पर तुम तो उड़ कर अपने प्राण बचा लो."
चिड़ा बोला ,"ठीक है,मगर तुम अपना ख़याल रखना." कहा कर वह उड़ गया.
तूफ़ान रुकने के बाद उसने आकर देखा ,चिड़िया मर चुकी थी.
वृक्ष की एक डाली पर खून से लिखा था,"काश!वो एक बार तो कहता कि मैं तुम्हें अकेली छोड़कर नहीं जा सकता.यदि वह ऐसा कर लेता तो कम से कम मैं तूफ़ान आने से पहले तो नहीं मरती."
                                                                                 प्रस्तुति  -विश्वनाथ भाटी ,तारानगर ९४१३८८८२०९






Saturday, November 13, 2010

माँ

                               माँ  
माँ ने जन्म दिया,
पाला-पोसा ,
माँ ने खुद गीले में सो कर सूखे में सुलाया,
माँ ने तुतला-तुतला कर बोलना सिखाया,
माँ ने डगमगाते कदमों को उंगली का सहारा दिया,
माँ ने रात-रातभर जागकर हमारी नींद को संजोया ,
माँ ने आँचल की ओट से दुनिया के ह बुरे साये को दूर रखा,
माँ ने बहू-बेटे की आरती उतारी,
बेटा अपनी दुनिया में खो गया,
समझदार जो हो गया है,
तरस गयी ममता, 
बरस गयी आँखे,
नहीं है समय जीवनदात्री के लिए,
व्यापार भी तो करना है .
माँ दिल से सोचती है,
बेटा दिमाग से.
                           रचयिता-      विश्वनाथ भाटी,तारानगर

Tuesday, November 2, 2010

आतिशबाजी

इन दिनों आतिशबाजी का प्रचलन बहुत बढ़ता जा रहा है.आज हमें पर्यावरण के लिहाज से सोचना चाहिए कि इस से हमारे पर्यावरण को कितना नुकशान हो रहा है. थोड़े से आनंद के लिए ढेर सा पैसा और कितना सारा प्रदूषण समाज को मिल रहा है. हमें थोडा विचार करके इस दूषित परंपरा को बंद करना चाहिए.

Wednesday, October 13, 2010

शुभ-शुभ बोलो

                         व्यक्ति जैसा सोचता और करता है वह वैसा ही बन जाता है.हमारा अवचेतन मन हमारे द्वारा सोचे गये ,बोले गये ,देखे गये  को अपने भीतर जमा करता रहता है.यदि बुरा बोला तो बुराई जमा हुई और अच्छा बोला बोला तो अच्छाई जमा होगी.अवचेतन मन सोचने का काम खुद नहीं करता . हमारे द्वारा भरी गयी समस्त सूचनाएँ ही उसका आधार बनती है.हम चाहते तो कुछ और है मगर अवचेतन मन को देने वाली सूचनाओं की तरफ से बेखबर रहते हैं.इसी बात के कारण हमारे बड़े-बुजुर्ग सदा से यही कहते रहें है कि "सदा शुभ-शुभ बोलो ."आओ विचार करें कि हमारे द्वारा बोला गया हर वाक्य हरबार सकारात्मक ही हो.

Saturday, October 9, 2010

सिंचोगे शंकर,बगीचा खिलेगा.

वर्ष १९९०-९१ .मैं सरदारशहर  में बी.एड .कर रहा था.आर्थिक तंगी के दिन थे .जेब में सिर्फ ७.५० रूपये थे .अर्जुन कलब की ढलान पर मेरी बिना ब्रेक की साईकिल आगे बढ़ रही थी.साईकिल की घंटी को सुना अनसुना करके चाय की दुकान पर काम करनेवाला एक लड़का चला जा रहा था.बचाते-बचाते आगे का पहिया उसके हाथ के छींके से जा टकराया.चटक,चटक,चटक...तीन गिलाश टूट गये.मैंने बिगड़ते हुए कहा सुनाई नहीं देता क्या?लड़का बोला ,"साहब,साढ़े चार रूपये दे दीजिये ,तीन गिलाश टूट गये हैं."
"क्या कहा!साढ़े चार दे दूँ?हराम में आते हैं क्या?गलती तुम्हारी है.एक तरफ चलो और मुड़कर भी देखो,समझे?"
"साहबजी ,मेरी गलती रही होगी मगर मेरा मालिक मुझे बहुत मारेगा.मुझे नौकरी से भी निकल देगा."उसके चेहरे पर करुणा झलक रही थी.मैंने जेब से साढ़े चार रूपये निकल कर उसकी हथेली पर राख दिए.मैं कभी अफशोस तो कभी फकीरी हंसी हंस रहा था.
पहला घंटा बजते-बजते चपरासी ने कक्षा में आकर मेरा नाम पुकारा.डाकिया मेरे नाम ३० रूपये का मनी आर्डर  लिए खड़ा था.शिविरा में छपी रचना का मानदेय था.मैंने प्रभु का धन्यवाद् किया.मेरे मुख से निकला..
                                        जो देगा,दिया है,दिया सो मिलेगा.   
                                             सिंचोगे शंकर,बगीचा खिलेगा.

Friday, October 1, 2010

आदरणीय पिताजी

आदरणीय पिताजी ,
                           आपकी स्मृति में शत-शत नमन.मुझे याद है तब मैं छठी कक्षा का विद्यार्थी था.आपने मुझे पक्का जोहडा बालाजी पर भजन बनाने के लिए प्रेरित किया था.मैंने टूटी-फूटी शुरुआत की और स्कुल में ही एक भजन बनाया.आपकी प्रेरणा से वह मेरी पहली कविता,पहली रचना थी.आज मेरी कविताओं का एक संग्रह चिडपडाट  नाम से प्रकाशित हो चुका है.कविता और गद्य लेखन का क्रम अनवरत चाल रहा है.आप मेरे पिता के साथ-साथ साहित्यिक गुरु भी है.

प्रतियोगिता

माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ,राजस्थान द्वारा शिक्षको के लिए आयोजित प्रतियोगिता के अंतर्गत २७ से २९ सितम्बर,२०१० को राजसमन्द में राज्य स्तरीय आयोजन किया गया.सौभाग्य से निबंध लेखन प्रतियोगिता में मेरा स्थान प्रथम रहा.
विश्वनाथ भाटी ,तारानगर,चुरू